User:Abhai/Gurbani Hindi
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सति नामु
ऐक ओ अंकार^^^ (अंक+कार^^^ = लेखक) सच्चे नाम, 'कर्मी पुरष निर्भय निरवैर अमर मूर्ती ऐक स्वरूपी खुद ही बनी', के धारणकर्ता!.... गुरबाणी की कृपा से लिख और स्वास स्वास...... ==
जप
जन्मा सच्चा, अब तक रहा सच्चा, है भी सच्चा ओ नानक! तू रहेगा भी सदा सच्चा ही
१. सच्चे के हुक्म की रज़ा में चलना
सोचते ही रैहने से सच्ची सोच नहीं आती, बेशक सोचता रहूँ लाखों बार।
गुमसुम हो रहा नहीं जाता, बेशक रख लूं मौनव्रत बार हजार।
हरामखोरों की भूख न खत्म कभी, बेशक खिला दूँ दौलत अपार।
सैंकड़ों वेद पुराण कुराण पढ़ लूँ, तो भी एक न चले है साथ।
कैसे सच्चा बन रहिए ? कैसे टूटेगा कूड़े के कीड़ों का पलना?
हुक्म की रज़ा में चल कर ही! ओ नानक! लिखा जन्म से साथ!